मत सोचो कभी तुम, मतलब सिर्फ अपना।
करो तुम साकार, यहाँ सभी का सपना।।
मत सोचो कभी तुम—————।।
बहती है नदियां, बोलो किसके लिए ये।
फलते हैं दरख्त , बोलो किसके लिए ये।।
सोचो तुम हमेशा, हर दिल है अपना।
मत सोचो कभी तुम————-।।
चाहे राम कहो या, चाहे तुम रहीम कहो।
सबका मालिक एक है, कुछ भी उसको कहो।।
छोड़ो धर्मों का झगड़ा, नहीं कोई बैगाना ।
मत सोचो कभी तुम—————।।
बर्बादी करो मत, लड़कर तुम आपस में।
आबाद करो वतन को , मिलकर तुम आपस में।।
बांटो दर्द सभी का तुम , बांटो सुख अपना।
मत सोचो कभी तुम—————।।

रचनाकार एवं लेखक- 

गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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