दिन भर बोझा ढोकर सर पर
कड़ी धूप में मेहनत कर
शाम को रूखी सूखी रोटी का
इंतजाम कर पाता है
रात को फुटपा थ पर ही
पैर फैलाकर सो जाता है
ये वो मेहनत कश है
जिसे मौसम की परवाह नही
अपने श्रम से ही
अपने भाग्य को लिखता है
ऊंची ऊंची बिल्डिगे बनाता
पर खुद खुले में रहता है
जाड़ा गर्मियां बरसात
सबकी की मार को सहता है
हाथ और पैर के छा ले भी
उसकी हिम्मत तोड़ नही पाते