मजबूर नहीं मजलूम नहीं
मजदूर है हम, मेहनत मेरा
ईमान खून पसीना बहाते हम।।
मेरा अपना घर जीवन
का सपना सारे जहाँ का घर
बनाते है हम, कल कारखानों में
हम मानव मशीन बन जाते है हम।।
बड़े बड़े महल अटारी बनाते
हम ,वैसे तो दुनियां का हर
मानव श्रम करता मगर श्रमिक
कहलाते हम।।
दिन और रात चिलचिलाती
धुप हो या कड़क सर्द की ठंडी
बारिस हो या तूफ़ान श्रम की
भठ्ठी में खुद को गलते है हम।।
कोई इच्छा अभिलाषा नहीं
विकास निर्माण की कोल्हू में
पिसते जाते हम।।
दो वक्त की रोटी मेरे लिये जीवन की सौगात आजाद मुल्क में गुलाम सा
जीवन जीते जाते हम।।
गीता में कर्म योग कृष्णा का ज्ञान सिरोधार्य कर कर्मएव जयते ,धर्मएव जयते, श्रमएव जयते ,सत्यमेव जयते को जीते जाते हम।।
खून हमारा पानी जीना मारना बेईमानी वक्त समय घुट घुट कर
जीते मरते जाते हम।।
अभिमान हमे भी हम है मानव किला दुर्ग हो या रेल ,प्लेन हम मजदूर बनाते।
अब बिडम्बना मेरी किस्मत का अपने ही वतन में प्रवासी कहलाते हम।।
पल पल चलते राष्ट्र धुरी के इर्द गिर्द चलते जाते हम,जो भी हम निर्माण करे मेरा अधिकार नहीं रेल की भीड़ में धक्कम धक्का खाते है हम।।
आकाश में उड़ते वायुयान देख खुश हो जाते है अपने ही कृति कौशल की
दुनियां से अनिभिज्ञ हो जाते हम।।
ऐसे उद्योगों में जहाँ जहर ही जिंदगी जीवन की परवाह नहीं जहर भी पीते जाते हम।।
खेतिहर मजदूर या कामगर हर प्रातः नगर शहर चौराहों पर नीलाम हो जाते हम।।
गर हो जाए रोग ग्रस्त अस्पताल इलाज के चक्कर में ही दम तोड़ जाते हम।।
किस्मत से इंसान बदकिस्मत से मजदूर सिर्फ सांसो धड़कन की
काया में जीते जाते हम।।
ना कोई हथियार हाथ में ना कोई
दुःख पीड़ा सत्य और आग्रह से
इंकलाब हम गाते है हम।।
मांगे गर अधिकार शांति से जीवन
जीने का लाठी गोली खाते मारे
जाते हम।।
किसी मिल का द्वार प्रांगण हो या हो मजदूर किसान के स्वाभिमान की बात पैरों से रौंदे जाते हम।।
चाहत इतनी काम मिले काम का न्यायोचित दाम मिले जीवन जीने का अवसर उचित सम्मान मिले।।
मेरी भी पीढ़ी अभिमान से जीवन जीना सीखे नैतिक मूल्यों के राष्ट्र में
मानव बन कर जीये।।
वैसे तो हर मानव मजदूर श्रम कर्म की महिमा मर्यादा मानव मजदूरों में जीना
सीखे ।।
अहंकार नहीं अभिमान नहीं अधिकार के आयांम में करते पुकार शंख नाद हम चाहते मजदूरों की खुशहाली सम्मान हम।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश