छा गयीं काली घटायें,बादल दुखों के छाये, 
माथे पर जो आयीं उनके, चिंता की रेखायें,
अचानक से, लाकडाउन जो आया,
प्रवासी मजदूरों पर, भारी पड़ गया, 
काम बंद, फैक्टरियों में पड़ गये ताले, 
बंद हो गये, रोजी रोटी के सारे दरवाजे, 
रोजी रोटी का जुगाड़, कहाँ से होगा अब,
बन गया था करोना, परेशानी का सबब, 
छटपटाने लगे मजदूर, दुख से अपने, 
लोट पायेंगे अब कैसे, हम घर अपने, 
आने जाने के साधन, हो गये सब बंद, 
किराया भाड़ा भरने, पैसा न था पास, 
जिम्मेदारी भारी, आ गयी उन पर, 
पत्नी बच्चे, भरा पूरा उनका परिवार, 
मन लबालब उनका, दुखों से भर गया,
मदद की लगी आस, पास कोई न आया,
फैसला करना पड़ा, कोई न सानी,
पैदल ही चलने की, घर जाने ठानी,
चलते चलते, घर एक दिन पहुँचेगे, 
रहे गर यहाँ तो, भूखे ही मर जायेंगे, 
खाली है पेट, सफर लम्बा, चलना पैदल, 
मन था दुखी, कदम भारी, चलना मुश्किल, 
चलना रखा जारी, कठिन सफर हो गया, 
कोई हो गया बेहोश, राह चलते गिर गया, 
राह में ही कुछ ने, तोड़ दिया दम, 
किसी की पत्नी, बच्चे हो गये बेदम,
मजदूरों का दुख, समझ न पाया कोई, 
न पूछा किसी ने, पास न आया कोई, 
कैसे होगी उसके, दुखों की भरपाई, 
रोजी रोटी छूटने का, दुख कितना भाई, 
पैसा पास न होने का, दुख कितना भाई, 
पैदल चलने की मजबूरी, दुख कितना भाई, 
रोटी का एक निबाला,न मिलने का दुख भाई, 
बीच राह में टूट गया दम,उसका दुख मेरे भाई, 
अन्तर्मन कैसे सहे, कर रहा चीत्कार, 
दुखी मन,मानवता को, रहा धिक्कार,
इस असह्य दुख की,पीड़ा को कैसे सहें, 
हम मजदूरों का,धनी धोरी कोई नहीं क्या…?
         काव्य रचना -रजनी कटारे
               जबलपुर म.प्र. 
                                        
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