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सैलाब बह रहे हैं आँसुओं के , उनकी सजी महफिल है।
क्या बाटेंगे वो दर्द लोगों के, कहना जरा मुश्किल है।।
वो करते नहीं गरीबों से यारी,नफरत है उनको इनसे बहुत।
वो देख दशा यतीमों की, हो जाते हैं उनसे दूर बहुत।।
दुत्कार देते हैं इन गरीबों को, अपनी दर पर वो आने पर।
बना लेते हैं इनको गुलाम वो, मदद वो इनकी करने पर।।
जला देते हैं इनकी बस्तियां, अपनी दिपावली मनाने को।
बहाते हैं खून यतीमों का ,अपनी वो होली मनाने को ।।
लूटते हैं इनकी इज्जत, जमीं, इनका चमन वो लूटेरे।
बनाते हैं इनके पसीने से अपने महल, देश के वो कंगूरे।।
उठाते हैं फायदा वो लोग,इन गरीबों की मजबूरी का।
होते हैं बड़े कातिल वो ,करते हैं कत्ल इन यतीमों का।।
बेचते हैं अपना देश ,धर्म, अपनी वो प्रगति के लिए।
देते हैं भेद देश की सुरक्षा का , देश के दुश्मन के लिए।।
होगा कैसे बर्बाद यह देश , यही उनकी मंजिल है ।
लूट रही है इनसे धरती मॉं, लेकिन वो पत्थर दिल है ।।
रचनाकार एवं लेखक-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद