भोर सुहानी , नदियाँ निर्मल,
फूलों को मकरंद छुऐ!
ढूंढ रहे पराग फूलों में, कितने,
सुन्दर रूप लिए!!
उदय, आदित्य, नील गगन में,
ललिमा नभ पर छायी!
स्वर्णिम किरणें “मतवाली बन”
धरा स्पर्श करने आयी !!
सुन्दर पुष्प खिले बगिया मे,
महकी यौवन तरुणायी!
गूंजे शंख, मांदल ध्वनि, सब”
ऐसी मधुरता है छायी!!
पुष्प सजा चरणों में, प्रभु के,
सुन्दर सा फिर रूप सजा!
मानव मन, मुखरित “हो बोला”
भक्ति का, संयोग जगा!!
कांटे चुनकर, फूल बिछाओ,
मंगल बेला फिर आयी!,
मकर संक्रांति की बेला है,
पिता पुत्र मिलन की तिथि आयी!!
रीमा महेन्द्र ठाकुर वरिष्ठ लेखिका
राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश भारत