हर और मचा है हाहाकार
जब से बढ़ा है भ्रष्टाचार।
नर-नारी, बुढ़े और जवान,
चला रहे भ्रष्टाचार की दुकान।
कहीं पर हो रही भ्रूण हत्या,
कहीं पर देश को डुबाने का प्लान।
कही पर हो रहा नृशंस हत्या
कही बलात्कारी ले रहा जान।
कही धर्म को ही जरिया बना लिया।
चला रहे भ्रष्टाचार की दुकान।।
कही पर जात पात का मुद्दा बनाया
फूट डालकर करेंगे समाज कल्याण।
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे को बांटकर।
बांटने चले मां, बहन, बेटी का सम्मान।
यह कैसा आतंक मचाया है भ्रष्टाचार ने
हरन हो रहा अपने हाथों अपनों की आन।
नारी अपनी आबरू से ही खेल रही।
नर बचा नहीं पाते अपना आत्मसम्मान।
हवा फैल रही भ्रष्टाचार की चारों ओर
छीन गई हर होठ से मुस्कान
अम्बिका झा ✍️