चला इस समाज ने
हमेशा दोहरा ही दाँव,
बदलकर रख दिया
सम्पूर्ण मानव स्वभाव,
जब जबाब माँगा किसी ने
तो मुस्कुराकर कर दिया भेदभाव…..।
असमानता ऐसी जिसकी कोई तुक नहीं है,
बराबरी ऐसी जो किसी के बस की नहीं है,
तुलना ऐसी जो सम्भव बिल्कुल भी नहीं है,
छिन ली बिन कारण सर से छाँव,
जब जबाब माँगा किसी ने
तो मुस्कुराकर कर दिया भेदभाव…..।
अंतर फिर ईश्वर में हुआ,
फर्क फिर आस्था में जगा,
बिछोह फिर मन में पनपा,
और हो गये हृदय पर गहरे घाव
जब जबाब माँगा किसी ने
तो मुस्कुराकर कर दिया भेदभाव…..।
लिंग में समानता न रखी,
सदियों से उम्मीदें दबाये रखी,
कायरता अपनी छिपाये रखी,
आज हो रहा स्वतः बेहतरी का चुनाव
जब जबाब माँगा किसी ने
तो मुस्कुराकर कर दिया भेदभाव…..।
जाति को पूछकर लिख लिया,
मस्तिष्क को अपने समझा लिया,
बिन कारण अलग खुद को कर लिया,
जरूरत पड़ी तो दिया फलाने को भाव
जब जबाब माँगा किसी ने
तो मुस्कुराकर कर दिया भेदभाव…..।
निजी विचार🙏
स्वरचित व मौलिक✍
सुमित सिंह पवार “पवार”
उत्तर प्रदेश पुलिस
आगरा