कैसी रेलमपेल मची है 
कैसी धक्कमपेल मची है 
कोई आगे तो कोई पीछे 
कोई ऊपर तो कोई नीचे 
आगे आने की होड़ बड़ी है  
ना जाने बचपन कब आया था,
ना जाने कब यूँ ही मुस्काया था,
गठरी सपनों की, ढेर पड़ी हैं,पर 
देखो देखो भेड़ों की भीड़ खड़ी है,
सुन्दर सुन्दर सजधज, जामे पहने,
मदारी की डमरू पर बन्दर नाचे, 
कही कोई बैसाखी का साथ लिए,
तो कही बंदर बाँट की भीड़ बड़ी है, 
देखो देखो भेड़ों की भीड़ खड़ी है 
सबकुछ सीखा,पर फ़िर भी खड़े हैं 
ना जाने किस, दिशाभ्रम में पड़े हैं,
सफ़लता,ट्रॉफ़ियों से मेज भरी पड़ी है,
पर देखो ना, हर तरफ़, हर जगह तो 
भाषा,संस्कृति,शिक्षा की लाश पड़ी है,
देखो देखो…. भेड़ों की भीड़ खड़ी है,,
✍️शालिनी गुप्ता प्रेमकमल🌸
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)
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