वो नन्हा सा बच्चा,
पेट में जब भूख सताए
फूट-फूटकर रोता जाए
दर-दर हाथ फैलाने पर
रोटी तो नसीब में आ जाती
ना रहना पड़े भूखा कल,
चिंता बड़ी सताती….
अमीर फेकता खाना,
गरीब के पेट में भूख है रोती
ना जाने कितनी जिंदगियां
रोज है भूखी सोती…
पेट की भूख ना जाने इंसा से,
क्या-क्या है करवाता
भूख, रोटी चोरी करने के लिए
बेबस मन हो जाता..…
पेट की भूख, गरीबी, मासूमों से
बचपन छीन लिए हैं जाते
मजबूरी में रोटी तलाशते
कचरे के ढेरों में हैं जाते…
जिन्हें रोटी की कदर नहीं होती
वो क्या जाने भूख और गरीबी क्या है होती
बस एक रोटी की ख्वाहिश में
बचपन की मासूमियत है छीन लेती…
मंजू रात्रे ( कर्नाटक )
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