रोता बिलखता बालक देखा,था बहुत परेशान,
पेट मे भूख थी उसके,बदन खुला राह चला वो अनजान!
घूम रहा था बेबस,करूणामयी नजरो की तलाश मे,
मुंह फेर कर चले जा रहे सभी,वो देख रहा सभी को एक रोटी की आस मे!
पैदा कर क्यू छोड दिया,क्यू नही दी मुझे कोई पहचान,
गांव-गांव शहर शहर भटक रहा,बेच अपना ईमान!
पहुंचा चौखट ईष्ट देव की,छोडा एक कटु बाण,
बोलो प्रभु गलती मेरी,मुझसे क्यू हो अनजान,
छूकर देखो मेरे प्रभु मुझे,मुझमे भी है जान!
क्योकि मै भी हूं इंसान, मै भी हूं इंसान,
कहकर प्रभु से ऐसा वो हो गया निष्प्राण!
श्वेता अरोडा