जीवन भर संघर्ष करें पर हिम्मत नहीं है हारी
नई नई परिभाषाएं गढ़ती अबला नारी
नहीं रही असहाय पंगु और नहीं है अब बेचारी
बाधाओं को चीर बढ़ रही अब भारत की नारी
मन से है मजबूत बहुत अब नहीं रही सुकुमारी
कोई क्षेत्र अब नहीं अछूता जहां न पहुंचे नारी
बच्चों को वे पाल रही हैं पति के लिए भी ढाल बनिहैं
बुरी नजर जो उस पर डाले उन सब की वह काल बनी हैं
कहीं मुखाग्नि देकर वह बेटे का फर्ज निभाती हैं
कहीं बनी विधवा वीरों की देश का कर्ज चुकाती हैं
अमर शहीदों की जननी बन पूजनीय बन जाती हैं
भले कलेजा मुंह को आए आंसू नहीं बहाती हैं
धीर वीर गंभीर हैं अब तो नहीं है कुछ लाचारी
उन्नति के सोपानोको छूती भारत की नारी
प्रीति मनीष दुबे
मण्डला मप्र