यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा
शायर इक़बाल की लिखी पंक्तियों में एक जोश, एक उमंग और संघर्ष छुपा हुआ है।
भारतीय सभ्यता और संस्कृति कई उच्चस्तरीय विचारधाराओं का संगम है, जिसमें मानव जीवन के सारे गूढ़ रहस्य छुपे हुए हैं।
भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने सदियों तक निरन्तर विध्वंस के दंश को झेला है, बाहरी आक्रमणकारियों और मध्यकालीन शासकों ने इस प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करने का हर सम्भव प्रयास किया।
नालन्दा विश्विद्यालय विध्वंस, सोमनाथ मंदिर विध्वंस और कर्नाटक के अतिप्राचीन 1500 से ज्यादा मंदिरों का मलिक काफ़ूर के नापाक हाथों द्वारा विध्वंस इस महान सभ्यता और संस्कृति की अस्मिता पर लगे वो दाग हैं जो हमें उस समय की गिरी हुई घिनौनी मानसिकता के बारे में सोचने पर मजबूर करते हैं।
इन सब के बावजूद भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने खुद के अस्तित्व को नष्ट होने से बचा लिया वरना समूचा विश्व “वसुधैव कुटुम्बकम” के महान संदेश से वंचित हो जाता।
“यदि किसी राष्ट्र को नष्ट करना है तो सबसे पहले उसकी सभ्यता और संस्कृति को नष्ट कर दो”
ये कथन अपने आप में एक गम्भीर सत्य प्रस्तुत करता है,
सभ्यता और संस्कृति विहीन राष्ट्र को नष्ट होने में अधिक समय नहीं लगता।
अफगानिस्तान में तालिबान की USA के खिलाफ जंग भी पश्चिमी संस्कृति से अफगानिस्तान को बचाने की ही जंग है।
मध्यकालीन भारत के शासकों की व्यभिचारिता और आपसी द्वेष का फ़ायदा उठाकर बाहरी आक्रमणकारियों ने हम पर सैकड़ों वर्षों तक शासन किया।
जिस देश में स्त्रियों को देवी स्वरूप मान कर पूजा जाता है, उसी देश की स्त्रियों को अगवा कर हरम में भोग्या के रूप में रखा गया, उनको बेचा गया उनका शारीरिक शोषण किया गया।
डच , पुर्तगाली और अंग्रेजों ने जब भारत में प्रवेश किया तब भारतीय राजाओं और नवाबों में व्यभिचार और भ्रष्टाचार चरम पर था जिसका उन्होंने फायदा उठा के हम पर 200 वर्षों से ज्यादा शासन किया।
आजादी की जंग में सैकड़ों लोगों को अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ी।
जिन गलतियों के कारण हमने सैकड़ों वर्षों तक ग़ुलामी के दंश को झेला है आज वो ही व्यभिचार और भ्रष्टाचार समाज के हर तबके को खोखला कर रहा है।
पाश्चात्य देशों में लोगों के काम करने के ढंग, उनकी अनुशासित जीवन शैली और उनकी वैज्ञानिक सोच का हम कभी भी अनुशरण नहीं करते हैं।
हम अनुशरण करते हैं उनके खुलेपन का, चाहे वो कपड़ों का हो या शारीरिक संबंधों का।
आज महानगरों में जीवन जीने की कल्पना मात्र से एक सिरहन सी दौड़ जाती है, जहां व्यभिचारिता हर उम्र , हर लिंग, हर तबके में घुस गयी है, दिल्ली का निर्भया केस इसका जीवंत उदाहरण है।
आज पोर्न देखने के मामले में भारत दुनियाँ के शीर्ष देशों में शामिल है, आज हर लड़का हर लड़की पोर्न के अंधकारमय संसार को जेब में लिए घूम रहा है।
आज हम वाणी से ही नहीं बल्कि कर्मो से भी पाश्चात्य संस्कृति का अंध अनुशरण करने में लगे हुए हैं।
सोशल मीडिया में पूर्णतया लिप्त आज के माँ-बाप भी आधुनिकता के मूर्खतापूर्ण दिखावे के चलते इसे आधुनिक पीढ़ी की सोच बोल के बगलें झाड़ लेते हैं।
” यदि किसी राष्ट्र को बिना युद्ध के नष्ट करना हो तो व्यभिचारिता और नग्नता को युवा पीढ़ी के लिए आम कर दो”
सलाहुद्दीन अय्यूबी का ये कथन बिल्कुल सटीक है, व्यभिचार में लिप्त युवा पीढ़ी उस देश को स्वयं नष्ट कर देगी।
आज जिस तरह से लोगों में श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों का ह्यस हो रहा है सच में बेहद गम्भीर और सोचनीय प्रश्न है।
पाश्चात्य जीवन शैली का बढ़ता अनुशरण हमें एक गहरी अंधेरी खाई की खोई ले जा रहा है, पाश्चात्य जीवन शैली में मानवीय मूल्यों और मानसिक शान्ति के अलावा सब कुछ है जोकि आज के भोगविलासी मनुष्य को चाहिए।
मनुष्य दिन व दिन कामुक, स्वार्थी, अन्यायी, डरपोक और एकाकी होता जा रहा है, आईये हम सब अपनी प्राचीन महान संस्कृति को पहचानें, उसको नष्ट होने से बचायें।
भारतीय संस्कृति के इस गिरते हुए स्तर के लिए सिर्फ युवा पीढ़ी ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि पिछली कई पीढ़ियां जिम्मेदार हैं जो धीरे-धीरे बदलाव की चपेट में आकर अपनी महान संस्कृति से दूर होती चली गयीं।
बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा पढ़ाना ना भूलें।
वेदों और गीता की ओर लौटें।
✍️✍️🇮🇳 ॐ 🇮🇳✍️✍️
रचनाकार – अवनेश कुमार गोस्वामी