भाग्य ने अपना,
रंग जमाया,
रोके से रुके न,
ये समय का पहिया,
राजा से रंक बनाया इसने,
रोते को हंसाया,
मुर्दे में जान फूंकी,
राम जैसे राजा को,
दे दिया चौदह वर्ष वनवास,
विदेह नंदनी बन गयी,
कानन की नंदनी,
पति के श्राप से,
अहिल्या बन गयी,
एक पाषाण शिला,
आए रघुवीर त्रेतायुग में,
सति का उद्धार करने,
दर्शन देकर देवकी को,
सुत हुए वसुदेव के,
कहलाए नंदलाल,
खेलें यशोदा माँ के अंगना,
गुरु कुल में जो खाए,
सुदामा, गरीबी को झेला,
दो मुट्ठी चावल के बदले,
दे दिया, दो लोक का राजपाट,
गौरा मैया ने बनवाई,
स्वर्ण नगरी रहने को,
रावण ने मांग ली अपने लिए,
पंडिताई की दक्षिणा,
सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र,
न राजपाट बचा,
खुद को भी बेच दिए,
एक डुमार के हाथ,
शर की शैया बन गयी,
भीष्म पितामह की,
इच्छा मृत्यु का वरदान,
फंस गया समय के चक्र में,
समय का पहिया,
चलता जाए,
इंसान की क्या बिसात,
जब भगवान न बच पाए,
भाग्य ने अपना…..।
काव्य रचना-रजनी कटारे
जबलपुर म.प्र.