भम्रित थे या भम्रित हो गये

वो तस्वीरों में थे या
हम यूं ही उनमें खो गये
रात गुजरी और भोर हो गये
वो खामोश ही रहे और
हम तो उनमें खो गये
भम्रित थे या भम्रित हो गये
उन्हें निहारते निहारते हम
यूं ही उनमें खो गये
बहती हवाएं भी
दिशा बदली और मौन हो गये
ठहरे ठहरे से हम बस उनमें खो गये
ना उसने नज़रें मिलायी
बस कहीं ओर देखते रह गए
रात गुजरी , रोशनी अश्को
को चुरा ले गए 
भम्रित थे या भम्रित हो गये
हम तो उनकी तस्वीरों में ही 
खो गये
वो रुठे रुठे से ना जाने
क्यो मौन रह गये?
ना पलकें गिरी, ना नजरें मिली 
ना जाने कैसे भोर हो गये
भम्रित थे या भम्रित हो गये
उन्हें चाहते चाहते हम 
खुद को ही खो‌ गये।।
प्रिया प्रसाद ✍️
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