भगत सिंह ; जेल डायरी
धारावाहिक भाग -२
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बांगा में हुआ था जो की वर्तमान में पाकिस्तान में है। भगत सिंह भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे। चंद्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आजादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार की मुकाबला किया। इन्होंने दिल्ली की केंद्रीय संसद (सेंट्रल असेंबली) में बम विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलंदी प्रदान की। इन्होंने असेंबली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें 23 मार्च 1931 को इनके दो अन्य साथियों राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फांसी के समय से 11 घंटे पूर्व(कुल दो केस में)फांसी पर लटका दिया गया। सारे देश में इनके बलिदान को बड़ी गंभीरता से याद किया जाता है।
किंतु दुख की बात यह है कि आज इनके द्वारा लिखित पुस्तक मिलना बहुत कठिन हो गया है । मैंने बहुत जगह इनकी (भगत सिंह) जेल डायरी ढूंढी , किंतु नहीं मिली । जबकि हेलन किलर, गुलिवर ट्रेवर, थ्री मैन इन ए बोट, रिच डैड पुयर डैड , हॉफ गिर्लफ्रेंड जैसे नोबल मार्केट में भरे पड़े हैं। लगातार दो दिन बहुत कोशिश करने के बाद एक दुकान में मुझे ये “मैं नास्तिक क्यों हूँ” पुस्तक मिली। फिर मैंने सोचा क्यों न इस पुस्तक के अध्ययन करने के बाद इनके बारे में लिखा जाए ताकि सभी लोग आसानी से भगत सिंह के बारे में जान सकें।
“क्योंकि आज जो हमारे देश की स्थिति है , उसे देखकर तो यही लगता है की एक समय ऐसा आयेगा जब बच्चों को भगत सिंह की बलिदान तो क्या ! वह कौन हैं? ये तक पता नहीं होगा।
“”हमें फांसी देने के बजाय गोली से उडाया जाए; भगत सिंह”फांसी पर लटकाए जाने से 3 दिन पूर्व 20 मार्च 1931 को सरदार भगत सिंह तथा उनके सहयोगियों श्री राजगुरु एवं श्री सुखदेव ने निम्नांकित पत्र के द्वारा सम्मिलित रूप से पंजाब के गवर्नर से मांग की थी कि उन्हें युद्धबंदी माना जाए तथा “फांसी पर लटकाए जाने के बजाय गोली से उड़ा दिया जाए” यह पत्र इन राष्ट्रवीरों की प्रतिभा ,राजनीतिक मेधा, साहस एवं शौर्य की अमरगाथा का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।
20 मार्च, 1931
प्रति,
गवर्नर पंजाब ,शिमला
महोदय,
उचित सम्मान के साथ हम नीचे लिखी बातें आपकी सेवा में रख रहे हैं – भारत की ब्रिटिश सरकार के सर्वोच्च अधिकारी वायसराय ने एक विशेष अध्यादेश जारी करके लाहौर षड्यंत्र अभियोग की सुनवाई के लिए एक विशेष न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) स्थापित किया था, जिसमें 7 अक्टूबर ,1930 को हमें फांसी का दंड सुनाया । हमारे विरुद्ध सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया है कि हमने सम्राट जॉर्ज पंचम के विरुद्ध युद्ध किया है। न्यायालय के इस निर्णय से दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं- पहली यह की अंग्रेज जाति और भारतीय जनता के मध्य एक युद्ध चल रहा है। दूसरी यह है कि हमने निश्चित रूप में इस युद्ध में भाग लिया है । अतः हम युद्ध बंदी हैं। यद्यपि इनकी व्याख्या में बहुत सीमा तक अतिशयोक्ति से काम लिया गया है ,तथापि हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि ऐसा करके हमें सम्मानित किया गया है । पहली बात के संबंध में हम तनिक विस्तार से प्रकाश डालना चाहते हैं । हम नहीं समझते कि प्रत्यक्ष रुप में ऐसी कोई लड़ाई छिड़ी हुई है । हम नहीं जानते कि युद्ध छिड़ने से न्यायालय का आशय क्या है ?परंतु हम इस व्याख्या को स्वीकार करते हैं और साथ ही इसे इसके ठीक संदर्भ में समझाना चाहते हैं।
क्रमशः
गौरी तिवारी भागलपुर बिहार