———————————————–
बढ़ता चल तु राही, बढ़ता चल तु हरपल।
कभी ना कभी तो तुमको कहीं, मिलेगी तेरी मंजिल।।
बढ़ता चल तु राही—————।।
अपनी राहों के कांटों को, तु अपना यार बना ले।
पर्वत और तुफां को तु, अपना प्यार बना ले ।।
चट्टानों को तु गले लगा, नहीं है कुछ भी मुश्किल।
बढ़ता चल तु राही—————-।।
रोकेगी तुझे प्रीत तेरी, दौलत का तेरा खजाना।
छोड़ दे तु मोह महल का, फूलों से दूर रहना।।
भूल-भूलैया है यह रौनक, बचकर इनसे चल।
बढ़ता चल तु राही, ——————–।।
अपने वतन का फर्ज भी, तुझको निभाना है जरूर।
माता- पिता का कर्ज भी, तुझको चुकाना है जरूर।।
पूरे करना इनके सपने, नहीं तोड़ना तु इनका दिल।
बढ़ता चल तु राही—————।।
रचनाकार एवं लेखक- 
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *