शीर्षक:- बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाय।
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आज शंकर अपने बेटे मोहन को सलाखौ के पीछे देखकर बहुत पछता रहा था। अब उसे अपने पुराने दिनौ की याद ताजा होगयी।
" सुनते हो जी ? " शंकर की पत्नी अपने पति को आवाज देती हुई बोली।
"क्या हुआ? इतनी तेज आवाज में क्यौ चीख रही हो ? मै बहरा नहीं हूँ। " शंकर अपनी पत्नी रेखा से बोला।
"तुम बहरे ही हो मैनें पिछली बार भी आपको सयझाया था कि मोहन की आदत बहुत खराब होती जारही है वह आज फिर स्कूल से किसी की किताब चोरी करके लेआया है। तुम इसे समझाते क्यो नहीं मै कुछ कहती हूँ तब आप इसकी सिफारस में खडे़ हो जाते हो!" रेखा शंकर को उलाहना देते हुए बोली।
” देखो रेखा मै उसे प्यार से समझादूँगा तुम समझती नहीं हो अभी तक यह बच्चा है। जब बडा़ होजायेगा तब स्वयं ही समझ जायेगा। मै भी बचपन में एसा ही था। तुम चिन्ता करना छोड़दो ।” शंकर ने पत्नी को समझाया।
"अब तो तुम मेरी बात नहीं सुनते हो। अभी यह समझ सकता है जब बडा़ हो जायेगा फिर यह किसी की नहीं सुनेगा। मेरा काम था आपको बताना मेरी बला से जब आप अपने से तुलना करते हो तब मुझे इसका भविष्य खराब नजर आता है।" रेखा नाराज होकर अपना पैर पटकर चली गयी।
इसके बाद मोहन की चोरी करनै की आदत बनती गयी। रेखा अपने पति को हर बार समझाती कि मोहन को रोको नही तो लोग हम दोनौ को ही दोष देंगे। और कहेंगे कि जब आपने बबूल का पेड़ लगाया है तो इस पर आम नही लग सकते है इस पर तो सूल ( काँटे ) ही लगेगे।
लेकिन शंकर पुत्र मोह में कुछ नहीं बोलता था क्यौकि मोहन उसका इकलौता बेटा था।
इस तरह मोहन की चोरी करने की आदत बढ़ती गयी। अब वह घरौ से सामान चुराकर। बाजार में बेचने लगा। उसके साथी भी उसका साथ देते और खाने पीने की मौज मस्ती करते थे।
अब शंकर को अपनी भूल का अहसास होने लगा था परन्तु तब तक तीर कमान से निकल चुका था। और एक बार कमान से निकला हुआ तीर बापिस नहीं आता है।
धीरे धीरे मोहन अब बडे़ हाथ मारने लगा उसका खर्चा भी बहुत बढ़ने लगा था अब वह शराब भी पीने लगा था एवं वैश्याओ के कोठे पर भी जाने लगा था।
अब शंकर का जीना भी कठिन होगया हर रोज उसके पास मोहन की शिकायत आने लगी थी।
इसबार तो मोहन ने गजब कर दिया। उसने एक जमीदार के बच्चे का अपहरण कर लिया और वह इस काम अभी नया आया था । जिससे वह पकडा़ गया और सलाखौ के पीछे चला गया।
अब शंकर के दोस्त व पडौ़सी उससे कहने लगे कि यह सब तुम्हारे कारण हुआ है यद तुम पहले दिन उसे चोरी करने से रोकदेते तब आज वह चोर नही होता। जब तुमने बबूल का पेड़ लगाया है तब तुम्है आम खाने को कहाँ से मिलेगे। अब तो काँटौ को सहन करना होगा।