हो तुम मोहताज हर पल
मेरी दुआओं के,
मेरे माने हुए रीति-रिवाजों के
मेरे श्रृंगार के, मेरे हार परिहार के।
गर्भ में हलचल होते ही
दुआएं मांगी जाती हैं तुम्हारे लिए
पर आ जाती है फिर भी हम
उसके बाद भी कोशिशें होती हैं हमें नेस्तनाबूद करने की। सगी मां के द्वारा अक्सर खाने में ,घूमने में, पढ़ने में
किए गए भेदभाव भी नहीं रोक पाते हमें आगे बढ़ने से।
एक दिन मांग ना भरने पर सासू मां का तिलमिलाना
उनके बेटे की उम्र कम ना हो जाए
पर मेरी मां तो कभी नहीं तिलमिलाती
तुम्हारे करवा चौथ ना रखने पर ।
क्योंकि सबको पता है कि हम औरतें
पनप जाती हैं जंगल में फैली बेतरतीब बेल की तरह,
और तुम्हें बोनसाई की तरह जरूरत है
हमेशा छांव की देखभाल की ।
अनंत काल से आधीन हो
हमारे सोलह सोमवार के व्रतों के
पर हम बिना किसी दुआ के,
बिना किसी व्रत के, बिना किसी बात के
यूं ही तो हो जी लेती है ।
दफ्तर से आते ही तुम्हें एसी और गर्म चाय
की जरूरत होती है
और हम दफ्तर से लौटते
सब्जी भाजी खरीदते पसीने से तरबतर
फिर से एक नई ड्यूटी में जुटनेको तैयार होते हैं ।
रोटी बेलते हुए अक्सर बच्चों को होमवर्क करवाते हुए
अधखुली आंखों से सुबह की तैयारी करते हुए
और उसमें तुम्हारा 10 आवाज देकर पूछना
अरे ,मेरी नीली वाली शर्ट प्रेस नहीं हुई
तुम किसी काम की नहीं हो
तुम से कोई क्या उम्मीद रख सकता है???????
स्वरचित सीमा कौशल यमुनानगर हरियाणा