बस्ते का बोझा सहे, सुंदर कोमल गात।
बचपन ये मुरझा रहा, चिंतित होती मात।
चिंतित होती मात, बहुत उपाय वे करतीं।
लाल स्वस्थ हो जाय, प्रार्थना प्रभु से करतीं।
बोझा कम हो शीघ्र , रहें बच्चे सब हँसते।
माँ भी खुशी मनाय, जाय हो हल्के बस्ते।
स्नेहलता पाण्डेय ‘स्नेह’