अरे आज तो दीपक भैया का जन्मदिन है। छवि हड़बड़ाती सी घर में घुसते हुए बोलती है। दीपक ऊपर वाले कमरे में बैठा हताश सुन रहा था.. माँ सुन रही हो .. भैया का जन्मदिन है आज।
हाँ तो कौनसी बड़ी बात हो गई। सबका जन्मदिन होता है.. माँ ने कहा। कैसी बात कर रही हो माँ… ज्यादा कुछ नहीं खीर पूरी ही बना लो ना। भैया को भी अच्छा लगेगा।
इस बार माँ जोर से बोली… निठल्ला बैठा घर पर खा ही तो रहा है। कितने पैसे खर्च हुए इसकी पढ़ाई पर। ऑफिसर बनने चला था। चपरासी भी नहीं बन सका।
माँ.. क्या बोल रही हो.. छवि चीखी। कितनी मेहनत करते हैं भाई। कॉलेज टाँपर हैं। देश में बेरोजगारी पसरी है। जो नौकरियाँ थी.. उन्हें खत्म कर अनुबंध पर दिया जा रहा है। सारे नेता सिर्फ अपनी ढ़फली .. अपना राग गाते हैं और हम लोग किसी से बिना कोई सवाल जवाब किए.. उन सबके बहकावे में आ जाते हैं। तुम्हें पता है माँ.. 5000 में अच्छे पढ़े-लिखे लोग काम करने को तैयार बैठे हैं… वो भी किसी की पैरवी होने पर.. क्या करे भाई बताओ तुम.. ऐसे में हम भी उन्हें ताने दें.. ना माँ ये भी सही नहीं है।
तो मैं क्या करूँ..एक छोटी सी किराना की दुकान के भरोसे जिंदगी कैसे कटेगी। सोचा था.. बुढ़ापा में आराम करुँगी। तेरी शादी धूमधाम से करुँगी।कहाँ तो निकम्मा बेटा गले मढ़ दिया भगवान ने। छवि समझ गई माँ ने उम्मीदें इतनी ज्यादा पाल ली हैं कि उन्हें कुछ कहना व्यर्थ है तो भाई के पास चली गई।
मेहनत तो सच में करता है। मैं ही बुद्धिहीन क्या क्या बोल जाती हूँ.. खीर पूरी बनाऊँ.. पसंद भी है उसे।
ऊपर जाते ही छवि के मुँह से चीख निकल जाती है। जिसे सुनकर माँ भी दौड़ती हुई आती है। दीपक हिचकियाँ लेते हुए रो रहा था। बेटे को ऐसे देखकर माँ दौड़कर सीने से लगा लेती है।
– मैं किसी काम का नहीं हूँ माँ।
– नहीं मेरे लाल.. मेरी मति मारी गई थी।
– आज जन्मदिन पर तुमसे एक उपहार माँगू माँ.. दोगी तुम।
– हाँ हाँ बोल ना मेरे बच्चे…
– माँ आज से अभी से अपनी दुकान पर मैं बैठूँगा…
– तुम अब घर देखो बस माँ…
– पर तेरी पढ़ाई…
– दुकान पर ही करूँगा ना माँ…
– ना मत करना माँ…
– ठीक है बेटे..पर इसे स्थायी मत समझना। तुझे बहुत आगे जाना है.. समाज और देश के लिए कार्य करना है।
– हाँ माँ..
आज बेरोजगारी को एक युवा ने जन्मदिन के अवसर पर रोजगार में बदलने का प्रण ठान लिया था।
आरती झा”आद्या” (स्वरचित व मौलिक)
दिल्ली
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