हर देश के विकास की गति जिस सुरसा से हारी
सारे प्रयासों पे पड़ती जो भारी हाय रे बेरोजगारी हाय रे बेरोजगारी
देश के युवाओं के सपने बड़े हैं बड़ी-बड़ी डिग्रियां ले लाइन में खड़े हैं
कभी-कभी तो कोई युवा बस इसीलिए चूकता
की उसमें जरूरत से ज्यादा है योग्यता
प्रतिभा और बुद्धि द्रुतगति से बड़ी है
पर उसके बराबर से बेरोजगारी खड़ी है
युवा वर्ग अफ़सरी की चाहत लगाता
मनचाही मंजिल पर पहुंच ना पाता
निराशा के सागर में गोते वो खाता
धैर्य जब वो खोता तो सैलाब आता
जो सारे गुणों को बहाकर ले जाता
वह अपराधी बनकर कभी सर उठाता
कभी नशा करके कहर है वो ढाता
तो आए किसी की ना ऐसी अब बारी
किसी को सताए ना यह बेरोजगारी
प्रीतिमनीष दुबे
मण्डला मप्र