बेमतलब ही लगे हैं लोग रिश्तो को निभाने में ,
डर लगता है अपनी खुशियां किसी को दिखाने में।
थोड़ेखिलते हैं फूल थोड़ा बरसता है आसमां,
 फिर भी कोशिश है पुरजोर जमीन को बंजर बनाने में।
कामयाब ना होती हैं कोशिशें मोहब्बत प्यार की,
 इंसान लगा है सिर्फ खुद की हवस को मिटाने में।
सन्नाटे में रह रही है यूं ही दुनिया सारी ,
लोग डरते हैं अब थोड़ा सा भी मुस्कुराने में।
सिमेटते नहीं जिंदगी के अधखुले पन्ने  ‘,सीमा’
 दिल डरता है क्यों अपनों को अपना बनाने में ।
स्वरचित सीमा कौशल यमुनानगर हरियाणा
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