बेटी की विदाई के समय सभी की आँखे नम थी बेटी अपने पिता के गले लग कर रो रही थी, पिता की आँखें भी नम थी । एक नजदीकी रिस्तेदार ने धीरे से किशोरीलाल के कान में फुसफुसाया और फिर उसे बेटी से दूर ले गया । वह आंखों से आँसूओ को पोछते हुए लड़के के पिता के सामने जाकर खड़ा हो गया, लड़के के पिता ने कहा ,” भाई किशोरीलाल तुमने शादी तो अच्छी कर दी । पर ये जो दहेज दिया है इसको ले जाने में ढुलाई का पैसा दे देते तो । इतना सुनते ही लड़की का मामा केशव बोला “ यह तो तय नही हुआ था मुंशीलाल जी। आपने जो भी दहेज मांगा वो हमने दे दिया ,अब हम ढुलाई भी दे,
इतने में किशोरीलाल केशव को चुप कराते हुए बीच मे बोल पड़े ,“ अरे कोई बात नहीं केशव जाने दो और बैग खोल कर पैसे निकालने लगे। सौ के नोट की एक गड्डी निकाली और मुंशीलाल के हाथ मे पकड़ा दी।
गड्डी पकड़ते समय मुंशीलाल ने केशव की तरफ घूर कर देखा ।
किशोरीलाल ने कहा “ जाने दीजिए बच्चा है।”
तभी मैरिज हॉल वाले ने आबाज़ लगाई अरे किशोरीलाल जी हिसाब हो जाता तो ।
उधर बेटी कार में बैठ चुकी थी।दुनिया के हिसाब किताब में बेचारा किशोरीलाल अपनी बेटी को ढंग से गले भी नही लगा सका था। औऱ शायद ऐसा ही सभी के साथ होता है बेटी की शादी में , माँ के आँसू तो सभी को दिखते हैं, क्या पिता का चेहरा भी कोई देखता है। शादी की सजावट , खाना, दहेज ,सभी को दिखता है, पर उसके पीछे छिपे पिता के हालात किसको दिखते हैं।
फ़िलहाल किशोरीलाल वही एक कुर्सी पर बैठ गये और बोले हाँ भाई हिसाब निकलता है तुम्हारा ,
मैरिज हॉल बाले ने पर्चा बढ़ा दिया, उन्होंने हिसाब देखा रुपये गिने और उसको पकड़ा दिए, ।
मैरिज हॉल वाला वहाँ से चला गया मगर वह वही बैठा रहा। और अपनी बेटी को याद करने लगा। वह आज भी देख सकता हैं एक छोटी सी दो साल की बच्ची जो एक छोटी से फ्रॉक पहने हुए है और बडे ही प्यार से बोल रही है पापा पापा ।अपने छोटे छोटे कदमो से पापा की ओर बढ़ रही है, जैसे ही वह गिरनेवाली होती है, किशोरीलाल दौड़ कर उसे पकड़ लेता है। कभी उसको अपने कंधे पर बिठाता है तो कभी अपनी पीठ पर , जब खेलते खेलते थक कर वह सोना चाहती हैं तो उसको पेट पर लिटा कर धीरे धीरे थपकी देकर सुलाना आज उसे याद आ रहा है।
तभी एक फ़ोन की घंटी बजती है। किशोरीलाल फ़ोन रिसीव करते है । बेटी का फ़ोन था ,
“पापा आप ठीक तो है।” बेटी ने पूछा
हाँ बेटी में ठीक हूँ ” उसने अपने को संभालते हुए कहा
पापा अपना ध्यान रखना मैंने आपकी डायबटीज़ की दवा आपके रूम में कर्व्ड में रख दी है , ध्यान से खा लेना।
“ठीक है बेटी” इसके आगे किशोरीलाल को बोलने के लिए शब्द ही नही मिल रहे थे।
थोड़ी देर तक दोनों तरफ से शांति रही फिर किशोरीलाल ने कहा,“ अच्छा बेटी अपने घर में सबका ध्यान रखना।, फिर बात करते है।
और फ़ोन काट दिया, अगर और बात करते तो खुद को संभाल नही पाते । और फिर बेटी को भी अच्छा नही लगता।
इतने में केशव आ गया और पास में बैठ कर रोते हुए किशोरीलाल के कंधे पर हाँथ रख कर बोला “ चले जीजा जी”
किशोरीलाल उठे और केशव के साथ घर की ओर चल दिये । केशव के अलावा किसी ने भी एक बाप के आँसू नही देखे सभी ये जानते हैं कि किशोरीलाल के सर से लड़की की शादी का बोझ उतर गया, और वो बहुत खुश है ।