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कयी सालो मे एक बार ही जा पाते है
हम अपने गाँव शादी या त्यौहारो मे
फिर भी सबकुछ अपना सा ही लगता है
जैसे कुछ बदला न हो क्यी सालो मे
वो विशाल बूढ़ा बरगद के छाव मे बना शिव मंदिर
और साथ मे ठन्डे पानी से भरा वो शीतल तालाब
ठहर जाते है वक़्त जैसे वहाँ ज़ब ज़ब जाते है
लगता है जैसे कुछ बदला ही न हो कयी सालो मे
कितना भी गम हो दिल मे सब भूल जाते है
इतना सुकून उस बूढ़ा बरगद के छाव मे पाते है
तपती धुप मे भी बहते है हर पल वहाँ शीतल हवाए
लगता है जैसे कुछ बदला ही न हो कयी सालो मे
मन मे भक्तिभाव की उल्लास भर आती है
ज़ब आँखों को उस शिवलिंग की दर्शन होजाते है
सुलझे से लगने लगते है हर उलझन ज़िन्दगी के
जैसे असर सा दिखने लगता है मन की मुरादो मे
बहुत की सुन्दर सज जाता है हर सुबह दरबार शिव की
गाँव के लोगो की भीड़ लग जाती करने पूजा शिव की
सूरज की पहली किरण ज़ब पड़ते है भोले के ज्योत पे
बहुत ही लौकिक प्रकाश फ़ैल जाता है मंदिर के हर कण मे
हर शाम हम दौड़े आजाते थे हम वहाँ फिर से
रंग सिंदूरी बिखेरती सुहानी ढलते गाँव की शाम देखने
वो आसमान मे उड़ते पंछी और बिखरती लालिमा 
नूर सी भर देती है ज़मीं की हर तरफ आशियानो मे
शाम के समय और भी मनमोहक होजाता था वहाँ
हरियाली से सजे उस बूढ़ा बरगद के छाव मे
वो छोटे छोटे बच्चों के खेलना मंदिर के आँगन मे
लगता है जैसे कुछ बदला न हो क्यी सालो मे
साखो पर बैठी चहकती चिडिया जो गीत गुनगुनाती है 
प्रकृति के हर तरफ जैसे धुन कोई छेड़ जाती है
और भी सुहाना होजाता है वहाँ के वातावरण मे
लगता है जैसे रुक ही जाए उस बूढ़ा बरगद के छाव मे….!!
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नैना…. ✍️✍️
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