बुद्धि बनाम सुंदरता जैसे कोई मेल नहीं।
बुद्धिजीवी बुद्धिहीन का कोई मेल नहीं।।
सुंदरता कुरूपता में भी ये कोई मेल नहीं।
सबका महत्व होता है यह कोई मेल नहीं।।
बुद्धि बड़ी हो किन्तु ना हो सामाजिकता।
सुंदर बड़ी हो किन्तु ना हो सामाजिकता।।
बुद्धि का बड़ा घमंड हो पर संस्कार न हो।
सुंदरता का अहं भरा हो ये संस्कार न हो।।
वह बुद्धि किस काम की जो अभिमानी है।
वह सुंदरता किस काम की जो अज्ञानी है।।
बुद्धि भले कम हो पर यदि विचार है सुंदर।
दुनिया में उससे कोई हो सके नहीं है सुंदर।।
सुंदर विचार से ही उसका कद बढ़ जाता है।
हो कुरूप तो भी भाव से दिल चढ़ जाता है।।
सुंदर कोई बहुत हो पर आग उगलता रहता।
जन मानस के दिल को वह डसता है रहता।।
सुंदर हो पर प्यार भरा न करे कोई व्यवहार।
दिल में रखे खोट एवं सुसंगत न हो विचार।।
कैसे जगह बना सकता है जनता के दिल में।
रूप का जादू सदा चले न जनता के दिल में।।
बुद्धि विवेक सेही लोगों के दिल में जगह बने।
बुद्धि मिली इंसा को केवल जग में जगह बने।।
बल से जो काम ना हो वह बुद्धि से हो जाता।
बुद्धि प्रयोग करते-2 कोई बुद्धिमान हो जाता।।
इसीलिए बुद्धि और सुंदरता में ना है कोई मेल।
कहीं बुद्धि का खेल है कहीं सुंदरता का खेल।।
कहीं बुद्धि का जादू चलता कहीं रूप का जादू।
बुद्धि-सुंदरता दोनों हो तो क्या गजब का जादू।।
‘बुद्धि बनाम सुंदरता’ ये विषय समझ न आया।
कविता तो लिख डाला जो मेरे समझ में आया।।
रचयिता :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.