अशक्त तन अशक्त मन
करता है बस करुण क्रंदन ,
मुक्ति की है अभिलाषा
इच्छाओं में फिर भी वासा।
कैसा होता है ना यह बुढ़ापा???
ना सुने कोई ना कहे कोई
करे कोई सहे कोई ,
वेदना से ग्रसित मन
शिथिल होता तन बदन।
कैसा होता है ना यह बुढ़ापा???
लालसा बढ़ी रहे
बीमारियां जकड़ी रहे,
ना मान ना सम्मान है
एक अनचाहा मेहमान है ।
कैसा होता है ना ये बुढ़ापा???
पीछे देखे तो दुखित मन
भविष्य का अभी भी चिंतन,
मोह ममता में फंसा यह मन
दे चुका अपना सब यह धन।
कैसा होता है यह बुढ़ापा???
सभी पर है इसने आना
क्यों रह-रहकर है पछताना ,
जीवटता से इसे निभाना
जीवन का है अंतिम चलन ।।।
इसी का नाम है बुढ़ापा ।
सब पर आना है बुढ़ापा।
स्वरचित सीमा कौशल यमुनानगर हरियाणा