• जो आज बीत गया,वही तो होगा बीता कल, 
आज का आधार भी तो है बीता हुआ कल।
•इस प्रकार हो गए अन्योन्याश्रित सारे  दिन ,
चाहे हों वे आज या कल। 
•एक दूजे में समाए हैं सब जीवन के कंगूरे ,
बस समझ-समझ का फेर है,
जरा ठहर कर देख एक दूजे बगैर सब हैं अधूरे।
•इनसे ही तो हो जाती संरचना आगत कल की,
ऐ मनुज! कितना सच है यह कहना,
अतीत सुहाना,भविष्य अनजाना, औ वर्तमान है मन को बहलाना।
•क्यों फेर में पड़ता है कल-कल 
जीवन तो है आज में,जिससे बनेगा कल।
जी जी कर आगे बढ़ता चल,
कर्म-पथ का राही तू,कर्म अपने करता चल।
रचयिता- सुषमा श्रीवास्तव 
मौलिक कृति,सर्वाधिकार सुरक्षित ,रुद्रपुर, उत्तराखंड।
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *