गरमी का मौसम रहे,तपन भयी है तेज
भटक प्राणी तरस रहे, जल की करते खोज।
तपती जब ये भू रहे, आग बरसे खगोल
बूँद बूँद प्यासे रहे, जल लागे अनमोल।
त्रस्त भये पक्षी उड़ रहे, दाने बिन निष्प्राण 
शोध नीर की कर रहे, जल बिन त्यागे प्राण।
दिवस तपे आकुल रहे,हलक भये बेहाल
जन उपकार बना रहे, बदले इनका हाल।
परोपकार मानव धरे, बच पाये ये निरीह
बस दाना पानी रखे, ये भी रहे सजीव।
नि:स्वार्थ सेवा जीव की, अगर करे है कोय
सुकून मन में घर करें ,सार्थक जीवन होय।
तनिक जल की आस रहे, जलदान कर असीम
बिन पानी सब सून, कह गये संत रहीम।
स्वरचित एवं मौलिक
शैली भागवत “आस”✍️
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