आ रही,
ठंडी ठंडी मस्त,
पवन पुरवाई,
बसंत ऋतु,
आने वाली है,
आ रही ठंडी ठंडी…..
अब हो रही,
शीत मदमस्त,
आली पवन पुरवाई,
आने वाली,
ऋतुओं की रानी है,
आ रही ठंडी ठंडी…..
कभी प्रखर,
कभी अलमस्त,
सुनहरी धूप सुहानी,
अब सबको,
जतलाने वाली है,
आ रही ठंडी ठंडी…..
आ रही बासंती,
बहार मस्त,
बौर खिले अमराई,
बसंत बहार,
आने वाली है,
आ रही ठंडी ठंडी…..
फ़िजाएं बहक रहीं,
होकर मस्त,
डाली डाली पर आई,
देखो अब,
कोयल कूकने वाली है,
आ रही ठंडी ठंडी…..
पीली पीली,
सरसों फूली मदमस्त,
खेतों में महकाई,
प्रीत पीत चुनरिया,
ओढ़ने वाली है,
आ रही ठंडी ठंडी…..
गाँव की गौरी,
काढ़े घुंघटा वो मस्त,
बांट जोह रही,
प्रीत मिलन बेला,
अब आने वाली है,
आ रही ठंडी ठंडी…..
आ रही, ठंडी ठंडी मस्त,
पवन पुरवाई,
बसंत ऋतु, आने वाली है,
आ रही ठंडी ठंडी…..।
काव्य रचना-रजनी कटारे
जबलपुर म.प्र.