साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु प्रदत्त विषय

बाल की खाल निकालना ।

कविता

दोहा

किसी विषय पर जो करें, कभी गहन पड़ताल।

दोष निकाले तब उसे, कहते बाल की खाल।

करते हैं, कुछ लोग कमाल।

सदा निकालते,बाल की खाल।

चलते कभी न,सीधी चाल।

करते ,कोई न कोई ,वबाल।

अगर कोई ,पड़ जाए पाले।

ब्यर्थ में उसके,दोष निकाले।

उसे फंसाने , फेंकते जाल।

उसकी निकाले,बाल की खाल।

बारीकी, से,करते जांच।

सच को हर पल, दिखाते आंच।

दो और दो,को, कहते पांच।

बिन प्रयोग,कर लेते जांच।

सिया लौट ,वनवास से आई।

जानें क्या, कैकेई,मन भाई।

सिया से पूछा, एक सवाल।

क्या कभी,लखा, दशानन भाल।

कहा,कि, एक,अंगूठा देखा ।

कैकेई खींची, अंगूठा से रेखा।

दशकंधर का, चित्र बनाया।

व्यर्थ दोष ,सीता को लगाया।

लखा मंथरा, जब ये हाल।

रानी ने निकाली,बाल की खाल।

छोटी बातें, दीजिए टाल।

नहीं निकालो बाल की खाल।

बलराम यादव देवरा छतरपुर

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