बारिश की बूंदे
धरती को नहला रहीं
प्यासी है धरा
उसकी प्यास बुझा रहीं
नन्हीं नन्हीं बूंदे
कर रहीं अटखेलियां
पत्तों पर ठहर कर
मोती की मानिंद चमक रहीं
स्ट्रीट लाइट की रोशनी में
डिस्को सी थिरक रहीं
झूम रहे पेड़ पौधे खुशी से
मानो कर रहे स्वागत लहराकर
मोर नर्तन कर रहे
पी यू पीयू बोल रहे पपीहा
कोयल मधुर राग गा रही
चातक भी प्यास बुझा रहा
ओढ़कर धानी चुनर
धरा भी शर्मा रही
मानो सब मिल
स्वागत कर रहे बूंदों का।