बारिश की नन्हीं- नन्हीं सी बूँदें
जब  भी बसूंधरा पर पड़ती हैं
करती हैं तृप्त धरा को
मन का मौसम बदलती हैं।
देखकर टिप-टिप गिरती बून्दें
दिल अक्सर तुझे सोचने लगता है
साथ तुम्हारा मिला जाता जो
बस अरमान सजाने लगता है।
ये छोटी-छोटी सी बूंदें
जब तेरे चेहरे पर गिरती
छूकर तेरे रक्त अधरों को
सूखी माटी में मिलती।
महकाती इस वसुधा को
हृदय की अतृप्ति बढ़ाती
बनके मोरनी नाचतीं छमछम
दिल की धड़कन बढ़ातीं।
देखकर तुमको मन मेरा
घायल पक्षी हो जाता
चातक जैसा भीगता पल-पल
मन की प्यास बढ़ाता।
आशा झा सखी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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