बहुत याद आता मुझे
बाबुल तेरा आंगन
जहां गुजारा मैने
अपना अलबेला बचपन
जहांचिड़िया की भांति
ची ची मैं करती
तेरे आंगन फुदकती
मैं फिरती
उसके लिए अब भी
तरसता मेरा मन
वो नीम का पेड़
और वो झूला
झूली जहां तेरी
बांहों में झूला
आज भी मेरा मन
वहीं पर भटकता
रचाते जहां गुड्डे
गुड़िया की शादी
जिसमे सारे बच्चे
बनते थे बाराती
करता मेरा मन
फिर से तेरे आंगन
में घूमूं
एक बार फिर से
अपना बचपन जी लूं।।