बहुत दर्द हो रहा है मुझको,दिल भी मेरा मचल रहा 
बाबुल का आंगन,आज ,देखो  मुझसे छूट रहा !!
जिस आंगन ने मुझको, दुनिया से था मिलवाया 
वही मुझे अपने से आज , दूर देखो कर रहा !!
ठहरो जी भर के देख लूं जरा
अपने बाबुल का आंगन 
जिस घर मैं पली बढ़ी,
 जिस घर बीता मेरा बचपन,!!
छूट रही  है मां की गोदी,
छूट  रहा पापा  का प्यार !
छूट रही सब सखी सहेली 
छूट रहा भाई का लाड़!!
जिस घर खेली गुड़िया गुड्डा 
कॉलेज की मस्ती हजार!
लड़ना झगड़ना प्यार मनुहार 
यही था मेरा सुंदर संसार !!
पलकों पर बाबुल का आंगन 
मुझे बिठाए रहता था !
आज पराया करके मुझको ,
नजर चुराकर कहता है !
जाओ! मेरे आंगन की चिड़िया, 
दूर देश  जा बस जाओ   !
भूल के इस बाबुल का आंगन
 , पि के आंगन को हर्षाओ !!
फिर से एक बार गले लगा लो बापू
जी भर के रो लेने दो !
एक बार रोक लो मुझको 
मुझको अपने से दूर न जाने दो !!
दिल तड़प के कहता है बापू
न जाने फिर कब आना होगा !
तेरे आंगन की बुलबुल को 
फिर कब चहचहाना होगा!!
मुझे मत भूलना बाबुल ,
दिल से दूर न तुम करना!
जब भी सावन बरसे आंगन में
 याद मुझे तुम कर लेना!!
पूनम श्रीवास्तव
महाराष्ट्र
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