बीत गया इक्कीसवीं सदी का इक्कीसवाँ साल
आ रहा इक्कीसवीं सदी का बाईसवां साल
जो भी नादानी हुई थी ,इक्कीसवें साल में
भुला देना हर उस गम को ,जो मिला उस साल में
कहते हैं सब साल नया,किंतु क्या है हाल नया
नूतनता किस बात में है ,वही पुरानापन हर रात में है
चाल वही है ढाल वही है,मेरे सम्मुख सवाल वही है
वो ही धरती ,आसमाँ भी वो ही,वो ही सूरज,चाँद सितारे
वो ही इंसान ,वो ही कुदरत, वो ही नजरों के नजारे
फिर भी नव वर्ष का ,करें हम धूमधाम से स्वागत
मिले सबको ख़ुशियाँ भरपूर,न हो कोई भी आहत
बीते गम की अँधियारी रात,आये नई सुबह की खिलखिलाती सुबह
नेहा शर्मा