कृति संजय की तस्वीर को देख रही थी। अभी कुछ साल पहले की ही बात है जब वह शादी करके इस घर में आई थी। संजय एस.पी.था। अपने माता-पिता की इकलौती संतान होने के कारण वह बहुत ही लाडला था। मां को उस पर बहुत नाज़ था। कृति को आज भी वह गृह प्रवेश याद है।
शांति देवी (कृति की सासू मां):” बहू, पांव आगे कर इस
लोटे को धीरे से मारो…”

कृति ने उल्टे पांव से लोटे को मारा।
शांति देवीः” ओहो, सब सत्यानाश कर दिया। सीधे पांव से मारना था। क्या अनर्थ कर दिया तुमने !”

कृति सहम गई घबराई हर्ड कृति पीछे हट गई। तभी संजय ने धीरे से उसका हाथ पकड़ लिया।
राघवजी (संजय के पिता):” अरे, कोई बात नहीं भाग्यवान, लोटे को पता है बहू इस घर में नई है। कोई फर्क नहीं पड़ता। अब ज़माना बदल गया है। Be positive.”

वहां मौजूद सभी ठहाके मारकर हंसने लगे।
शांति देवीः” हूं..ह!”

हफ्ते भर बाद की ही बात है संजय दौड़ता हुआ आता है: “मां, ओ मां।”

शांति देवी (हड़बड़ाते हुए रसोई से बाहर आती है):” अरे, क्या हुआ, बेटा? सब ठीक है ना?

मां को गले लगाकर फिर धीरे से प्यार से कुर्सी पर बिठा कर संजय मां की आंखों में स्नेह भरी आंखों से देखता हुआ बोला,” मां, आपके लिए हरिद्वार के टिकट लाया हूं। काफी समय से आप जाना चाहते थे ना! आप मेरी वजह से कहीं जा नहीं पाते थे ना।”

शांति देवीः” कहां बेटा ये कैसी बहू तू लव मैरिज करके ले आया है। इसे कुछ नहीं आता। सब मुझे ही सिखाना पड़ रहा है।”

कृति रसोई के दरवाजे पर मायुस खड़ी सब सुन रही थी। संजय ने उसकी तरफ देखा और कृति ने अफसोस के साथ मुंह को दरवाजे के पीछे छुपा लिया।

संजय ने बड़े प्यार से मां का हाथ हाथ में लिया और चूमते हुए कहा:” मां, मैं जानता हूं आपको मेरे कारण बहुत तकलीफ उठानी पड़ रही है। आप भी जानती हो मां, कृति एक पी.आई. रह चुकी है। उसे अपनी नौकरी के चलते समय ही नहीं मिला होगा कि वो कुछ सिख पाती। आपके लिए कृति ने वो नौकरी भी छोड़ दी है। मां, उसे अपनी बेटी समझ कर सिखाओ ना, मां। वो बहुत अच्छा सिख जाएगी, आपसे। वो आपको बहुत प्यार करती है आपको, मां।”
शांति देवीः” तू बड़ा मस्केबाज़ है। अब हमारी टिकट तो बनवा ली पीछे कौन करेगा।”

कृति झट से रसोई से बाहर आती है और प्यार से कहती है,” मां, आप चिंता मत कीजिए मैं पूरी कोशिश करूंगी। आप जैसा सिखाएंगी मैं वैसे ही करूंगी, promise. “वह भी मां के कदमों में बैठ जाती है।

आज भी कृति की आंखों में वह क्षण तैरते हैं जब संजय के माता-पिता हरिद्वार से लौटे थे। बेटे की लाश को ज़मीन पर होल में ही तिरंगे में लिपटा देखकर राघवजी एक तरफ धक्के के साथ साथ गर्व का अनुभव कर रहे थे , वहीं मां का रो रो कर बुरा हाल था। कृति बेसुध सी लाश के पास बैठी थी। चारों ओर पुलिस वाले सम्मान में खड़े थे। एक आतंकवादी मुठभेड़ में संजय शहीद हो गया था। ये परिवार के लिए गर्व की बात थी कि संजय ने उस आतंकवादी को मार गिराया और देश के कितने ही लोगों की जान बचाई। पुरा शहर उस परिवार का मनोबल बढ़ाने आगे आया। लेकिन इस हंसते-खेलते परिवार का सबकुछ चला गया था। वो खुशी वो जीने की चाह सबकुछ। अब घर में जैसे सन्नाटा सा था। शांति देवी : ” कृति.. कृति बेटा..”
आवाज लगातीं हुईं कृति के कमरे तक पहुंचती है। कृति झट से आंसू पोछती हुई बाहर आती है।

शांति देवीः” फिर अकेली अकेली रो रही थी ना! मेरी तो कोई सुनता ही नहीं, यहां पर। तुझे कहा था ना हमारे लिए अपनी जिंदगी ख़राब ना कर। तू शादी कर लेती तो हमारे सिर से तेरी चिंता उतर जाती।” मां की आंखों में आंसू आ गए।

कृति शांति जी को गले लगा कर बोली,” कितनी बार कहा मां मैं आपकी बेटी नहीं बहू हूं। मुझे आपकी जिम्मेदारी का वहन करना है। बहू का ब्याह थोड़े ही होता है। मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं। आप ही मेरी दुनिया हैं। और संजय कहीं नहीं गए वो आज भी इस घर की दीवारों में, आप में…. इस घर के आंगन में, मुझ में… सब जगह है। मैं उन्हें कैसे भूला सकती हूं, मां?”

शांति देवीः” तू बिल्कुल संजय की तरह बात करने लगी है। ऐसा लगता है जैसे मेरा बेटा वापस आ गया है। “

कृतिः” हां मां, मैं आपका बेटा ही तो हूं, मां!”

दोनों की आंखें भर आईं।

तभी एक कोन्स्टेबल आता है,” मैडम, आपकी गाड़ी रेडी है।”

कृति उसकी तरफ देखती है और मां को मुस्कान के साथ सलामी देकर विदा लेती है और अपनी ड्यूटी पर चल देती है, दंश की सेवा करने। उसने पुलिस की नौकरी फिर ज्वाइन कर ली थी।

जय हिन्द दोस्तों ! देश के वीर सैनिकों को समर्पित यह कहानी आपको कैसी लगी कमेंट करके अवश्य बताएं 🙏

आपकी अपनी

(deep)

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