बहती गंगा में हाथ धोना
*******************
" दीदी आपके लिए एक भैया ने यह खत भेजा है।" इतना कहकर वह बच्चा जाने लगा ।
लेकिन सुहानी ने उस लड़के की बाजू पकड़ली और उससे पूछने लगी ,” सच सच बताना यह खत मेरे लिए किसने भेजा है।”
" मै उनका नाम नही जानता हूँ उन्होंने मुझे दस रुपये दिये और मुझसे कहा कि यह खत उन गुलाबी सूट वाली को दे दो। सच बता रहाहूँ दीदी मेरी माँ दो दिन से भूखी है इस लिए मैने मजबूरी बस यह काम कर दिया है।" वह बच्चा रोता हुआ बोला।
" तेरी माँ क्यौ भूखी है तेरे पापा कहाँ गये है जो तेरी माँ भूखी है ? " सुहानी ने उस बच्चे से पूछा।
"मेरे पापा हमें सोता हुआ छोड़कर न जाने कहाँ चले गये वह आज तक घर बापिस नही आये हैं। मेरी माँ घरौ में बर्तन साफ करके मेरा पेट भरती है लेकिन वह दो दिनसे बीमार है। इस लिए घर में खाना नहीं बना है। " वह बच्चा रुआँसा होता हुआ बोला।
" कोई बात नहीं है मै तुझे सौ रुपये दूँगी मेरा खत उस लफंगे तक पहुँचा देना।" इतना कहकर सुहानी ने पहले उस खत को पढा़ । उसमें लिखा हुआ था कि "मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ। मैं गेट के बाहर पेड़ के नीचे खडा़ इन्तजार करूँगा।"
सुहानी ने उसी कागज के नीचे खाली जगह में लिखा " मिस्टर मै कोई बहती गंगा नहीं हूँ जिसमें जोभी आये और अपने हाथ धोकर चला जाये। "
सुहानी ने सौ रुपये देकर उस बच्चे को वह कागज का टुकडा़ उसके पास भेज दिया।
जब वह बच्चा उसको खोजता हुआ शुलभ के पास पहुँचा और उसे वह कागज थमाकर भाग गया।
शुलभ को उसमें लिखा जबाब पढ़कर गुस्सा भी आरहा था और हसी भी आरही थी। उसने उस कागज को अपने पर्स में रख लिया और चुप होगया।
कुछ समय बाद ऐसा हुआ कि सुहानी के पापा ने सुहानी के लिए सुलभ को ही पसन्द कर लिया।और जब सुलभ सुहानी से मिलने गया तब उसे देखकर आश्छर्य चकित होगया क्यौकि उसे सुहानी की सूरत आज भी उसकी आँखौ में बसी हुई थी।
उसने इसका एहसास सुहानी को नहीं होने दिया और सूहानी को पसन्द कर लिया। और सुहानी उसकी दुल्हन बनकर आगयी।
जब सुहागरात की सेज पर वह सुहानी से मिला तब बोला," सुहानी ! अब मै इस गंगा हाथ ही नहीं धोऊँगा अपितु डुबकी भी लगाऊँगा।
इतना सुनते ही सुहानी को वह बात याद आगयी।और वह शरमाने लगी। और उसने पूछा," क्या आप-------?"
वह इससेआगे कुछ कहती उससे पहले सुलभ ने वह कागज अपने पर्स से निकाल कर सुहानी के सामने रख दिया।
सुहानी उसको याद करके शरमाती हुई बोली, " अब सबकुछ कानूनन आपका है। डुबकी लगाओ अथवा हाथ धोओ।" और वह सुलभ के अंक में समागयी।
नरेश शर्मा ” पचौरी “