साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु प्रदत्त विषय
बहती गंगा में हाथ धोना।
कविता
गीत
सब कुछ पाकर , कुछ न खोना,लाभ ही लाभ न हानी है।
बहती गंगा में हाथ धोना, कहावत जानी मानी है।
१ जिसने समय का लाभ उठाया,
उसने सफलता पाई है।
एक पंथ में काज बनें दो,
दूर हुई कठिनाई है।
टेक सही लक्ष्य पर जिसका निशाना,
उसकी रहे निशानी है ०………
सिंधु मंथन के बाद
२ दैत्य देवता अलग अलग दोनों कतार में बैठाये।
देव सुधा दानव को मदिरा,
छलिया ने छल कर वटवाये।
टेक बहती गंगा में हाथ धोकर,
सुधा पिया खल वरदानी ०……..
३ गंगा तट पर राम ग्रे,
केवट से बोले पार करो ।
पहले चरण धुलाओ प्रभूजी,
नाथ न अब इंकार करो।
टेक बहती गंगा में हाथ धोये,
केवट की मनमानी है ०……….
४ गंगा जू की गंगा जू शिवराजपुर की हाट मिली।
अच्छा माल लिया सस्ते में,
धन की जैसे वाट मिली।
टेक जो बहती गंगा में, हाथ धोये,
लोग कहे लोग कहे उसे ज्ञानी है ०…….
५ मौके पर चौके को लगाओ,
समय का सदुपयोग करो।
सदा समय के साथ चलो,
फिर भोग करो या योग करो।
टेक केबल राम की बहती गंगा में हाथ धोते ज्ञानी है ०……
सब कुछ पाकर कुछ न खोना लाभ ही लाभ न हानी है।
बलराम यादव देवरा छतरपुर