प्रिय बसंत रितु आ गई, बहती प्यारी वात।
 फूल वृक्ष सब झूमते, हिले जोर से पात।।
 क्यारी न्यारी लग रही, खिले पुष्प सब रंग।
 भौंरे गाना गा रहे, प्रिय कलियों के संग।।
 हरियाली से भू सजी, झूम रहा है व्योम। 
 चले बसंती जो हवा, पुलकित होता रोम।।
 ऋतु बसंत मन भाविनी, नर नारी हरषाँय। 
 सुमिरन प्रियतम को करें, धीरज तनिक न आय।। 
 कोयल गाना गा रही, चहुँदिशि गूँजे गीत।
 हर मानव अब झूमता, लिए संग मनमीत।।
 फूलों की खुशबू वहे, लेकर संग समीर।
 कल कल करती है नदी, आनंदित है नीर।
 नव पल्लव विकसित हुए, कलीं रहीं मुस्काय। 
 है किसान तैयार अब, फसल काटने जाय।। 
 पीली चादर से ढके, सरसों के यह खेत।
 तितली मधुमक्खी सभी, मजा फूल का लेत।। 
गीता देवी 
औरैया उत्तर प्रदेश
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