पीली चादर तानें धरती है गदराई,
लो कलियों ने फिर ली अंगड़ाई,
फूलों ने भी पंखुड़ियॉं चटकाई,
सतरंगी बहार चहुॅं ओर है छाई,
बौर से लद गई सारी अमराई,
मन में उमंग भर जागी तरुणाई,
पीत वसन पहने केसरिया रंग रंगी,
गोरी देखो पी से मिलन को चली,
नई उमंग छा गई मन में उठी लहर,
प्रेम मिलन की घड़ी में उठ रही हिलोर,
आज श्याम संग खेलूंगी होरी सखी,
तन-मन सब है उनके ही नाम सखी,
सजधज निकली जब राधिका कुंज गली में
बांह पकड़ कान्हा ने रंग दिया अपने रंग में
कुछ शर्माई, कुछ सकुचाई सी, देखे पलक झुकाए 
राधा के मन में देखो पावन सी खुशी छाए 
प्रीत की ये ऋतु अनोखी है आई
बसंतोत्सव की देखो बहार आई।
© मनीषा अग्रवाल
इंदौर मध्यप्रदेश
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