करन के घर पर पेड़-पौधों का हरा-भरा बगीचा था। करन पौधों को रोज सुबह-सुबह पानी देता था। उसका प्रतिदिन का यही काम था। एक दिन करन ने पौधों को पानी नहीं दिया। सोचा, एक दिन अगर पेड़-पौधो को पानी नही दिया तो कुछ नहीं होगा। रोज ही तो देता हूँ। यह सोच कर वह आराम से बैठ कर खेलने में व्यस्त हो गया। कुछ समय बाद करन की अम्मी बगीचे में टहलते हुए आयी और बोली-” करन बेटा! कहाँ हो तुम,क्या तुम्हें स्कूल नही जाना है?” -“माँ! मै यहाँ बगीचे मै हूँ। मुझे स्कूल जाना है।” करन की माँ ने करन से पूछा-” बेटा! तुमने पौधों को पानी क्यों नहीं दिया?” -” माँ! रोज-रोज तो पौधों को पानी देता हूँ। आज ही तो नहीं दिया। आज पौधों को पानी देने का मन भी नहीं है, वैसे भी माँ आज ही तो पौधों को पानी नहीं दिया है। एक दिन म क्या हो जायेगा? कल जरूर पौधों को पानी दे दूँगा।” इतना कहकर करन वहाँ से चला गया। थोड़ी देर बाद करन ने माँ को आवाज लगाई और बोला-” माँ! आप जल्दी से मुझे नास्ता दीजिये, मैं स्कूल जाऊँ, वरना देर हो जायेगी।” -“करन बेटा! आज नास्ता न करो, वैसे भी रोज तो करते ही हो। एक दिन नास्ता न करने से क्या होगा? कल नास्ता कर लेना। अभी आप स्कूल जाओ।” करन को बात समझ में आ गयी कि पौधों को पानी देना कितना जरुरी है। करन ने तुरन्त पौधों को पानी दिया। फिर उसके बाद नास्ता करके खुशी-खुशी स्कूल चला गया। शिक्षा पेड़-पौधों में भी जीवन है। वह हमें क्या कुछ नहीं देते हैं, अतः हमें उनका ख्याल रखना चाहिए।
शमा परवीन, बहराइच, उत्तर-प्रदेश