बनकर अपना वो
गम ए जिंदगी में आया था
शायद कोई सबक हमें
जिंदगी का सिखाने आया था
बड़े मासूम थे हम जो गैरो पर
यक़ी जल्द कर लेते थे
उनकी कही बातो पर भरोसा हो
जाया करता था
वो भी उनमें से ही था जो
दोस्त बनकर हमें छलने आया था
बड़े शातिर थे ईरादे उसके
हर बात को शांति से सुन लेता था
लेकिन हमें क्या पता था वो तूफान
बनकर हमे ही तबाह करने आया है
हम तो हमदर्द समंझकर
उल्फ़ते ए जिन्दगी का हर
राज बताते रहे और वो
अपना बनकर हर
कदम पर हमे आजमाते रहे
सीखा दिया धोखे ने उसके
मत कर यक़ी किसी अज़नबी पर
जिन्हें अक्सर हम अपना समंझते है
अक्सर वही ज़ख्म गहरे छोड़ जाते है
सुमेधा शर्व शुक्ला