आज रश्मिरथी ने अपने नियमानुसार चित्रार्थी के लिए लेखन में जो तस्वीर दी है वह
तस्वीर आज के बदलते भारत की है, जहाँ महिलाएं अब पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहीं हैं और शायद कहीं उससे आगे भी हैं। कामयाबी की जिस ऊँचाई पर पहले सिर्फ मर्दों का राज था, अब महिलाएं भी वहाँ पहुँच रही हैं। लेकिन जितना आदर्श ये सुनने में लगता है, उतना है नहीं…क्योंकि ये अधूरा सच है। ऑफिस के बाद जब बात घर की जिम्मेदारियों की आती है तब पूरा बोझ महिलाओं पर ही डाल दिया जाता है। मतलब घर का किचन आज भी उस मॉडर्न महिला का असली पता है, जो सुबह-सुबह बदलते समाज की पहचान लिए ऑफिस जाती है। उस वक्त पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर नहीं चलता। तब पुरुष और महिलाओं की समानता की बात नहीं होती।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब आप समानता की बात करते हैं तो घर की जिम्मेदारियों को नजरअंदाज क्यों किया जाता है. हम ये तो स्वीकार कर चुके हैं कि महिलाओं को घर से बाहर निकलना चाहिए, लेकिन पुरुष घर के काम में कब हाथ बंटाएंगे? दुनिया में पुरुष और महिलाओं के बीच घर की जिम्मेदारियों को लेकर बराबर तो नहीं लेकिन समझौते की हद तक बंटवारा हो चुका है, लेकिन भारत में नहीं।
इस मामले में यूरोपियन कंट्री बहुत अच्छे हैं। वहाँ स्त्री-पुरुष घर-बाहर समान कार्य करते हैं। यहाँ तक कि बच्चों के पालन पोषण का शिक्षण माता पिता दोंनो को साथ साथ दिया जाता और उसे धरातल पर उतरता हुआ भी मैंने अपनी आँखो से देखा है।
थोड़ा-थोड़ा परिवर्तन अब भारत में भी देखने को मिल रहा है पर अभी सुधार की बहुत आवश्यकता है। 
यह बदलते परिवेश के नए स्वरूप को सामाजिक तौर पर हास्यास्पद नहीं बनाया जाना चाहिए बल्कि उस कार्यशैली का उत्साहवर्धन करना चाहिए। तभी समाज के अर्द्ध भाग का भी विकास और सम्मान हो सकेगा।केवल रसोईघर की बात ही नहीं है,और भी बहुत सारे तथ्य हैं जो परिवर्तन की माँग कर रहें हैं।सुविकसित होने के लिए सब पर ध्यान देना आवश्यक है। अभी के लिए इतना ही पर्याप्त है।
धन्यवाद!
राम राम जय श्रीराम!
लेखिका – सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक रचना,सर्वाधिकार सुरक्षित, रुद्रपुर, उत्तराखंड।
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *