गरीबी भी क्या चीज होती है, 
सूख  जाते है आखों के आसूं , 
चुप्पी ही सब कह जाती है, 
दो वक़्त कि रोटी नहीं मिलती, 
पेट ओर पीठ का पता नहीं चलता, 
फुटपाथ ही घर बन जाता, 
क्या बारिश, क्या धुप ये जानते नहीं, 
कभी जलते है तन तो कभी ठिठुरता है बदन, 
कपड़े क्या ये तो सिर्फ लाज  ढकते है, 
सच मे ये गरीबी बड़ी बेदर्द होती है। 
नसीब में नहीं किताबें इनकी, 
चलना शुरू किया तो, कटोरा पकड़ा दिया, 
पेट है जरूरी वरना  मौत खड़ी है हर पहरी,ये बता दिया, 
खुशीयो की एक बूंद नहीं होती, 
लेकिन कष्टों का सागर होता है
सुख क्या , इनका तो आशियाना ही दुखों से सजा होता है, 
सच मे ये गरीबी  बड़ी बेदर्द होती है। 
इलाज के भी पैसे नहीं, 
बिमारी के आते ही सजने लगती है अरथी, 
मन  चाहे जितना रो  ले पर आखों से आंसू नहीं बहता, 
सच मे ये गरीबी बड़ी बेदर्द होती है l
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