लंबे अरसे बाद जब एक 
फौजी छुट्टी आता है
तो अपनी ब्याहता से
  क्या कहता है 
जानता हूं पीला रंग
 तुम पर खूब जचता है 
उस दिन भी तो पीले रंग 
का सूट पहना था 
जब मैंने तुम्हें पहली बार
 देखा था और
 देखता ही रह गया था
 सरसों के खेत में जब
 पीले पीले फूल खिलते हैं
 तो नव यौवना से लगते हैं 
ऐसा ही रूप तुम्हारा होता है
 जब तुम पीले रंग में 
नजर आती हो 
और तब प्रियतमा 
अपने प्रियतम की बात का 
इस प्रकार उत्तर देती है 
कहती है जानती हूं कि
 तुम मुझे कितना 
पसंद करते हो
 तुम्हारे लिए ही तो इतना
 श्रृंगार किया है तुम्हारे लिए
 ही तो सज संवरकर 
आई हूं
ये चूड़ियां ये कंगना ये माथे की  
 बिंदिया ये पायल ये चुनर 
तुम्हारे लिए ही है
ये मांग में सिंदूर तुम्हारे नाम 
का ही सजाया है 
आंखों में काजल होठों पर लाली
  लंबे केशों को तुम्हारे लिए
  ही तो संवारा है
 आज मैंने फिर वही पीले रंग का सूट   
   तुम्हारे लिए ही तो पहना है
 देखो ना फिर वही चांदनी रात है
 तेरे हाथों में मेरा हाथ है 
नैनों की नैनो से हो रही बात है
  तुम भी खामोश मेरे लब भी 
   आज चुपचाप हैं 
देखों ना ये वही अलबेली रात हैं 
जब तुमने गले में मंगलसूत्र , 
  मांग में सिंदूर भर मुझे अपनी 
   जीवन संगिनी बनाया था 
तेरे होठों की हंसी 
मेरी आंखों की हया 
फिर वही दास्तां सुना रही है
 तेरी हर धड़कन मेरा ही नाम
 गुनगुना रही हैं 
थम जाये ये वक्त यही
बीते ना यह रात कभी 
सांसो पर लिखा हो नाम तेरा ही 
छूटे ना तेरा मेरा साथ कभी ।।
नेहा धामा ” विजेता ” बागपत उत्तर प्रदेश
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