आज फिर से सुनाओ ना 
अपनी हसरतों का फसाना 
नजरें चुराकर नजरों से 
शरमाकर कुछ कह जाना 
पलकों से पैगाम भेजकर 
दिल के आंगन में बुलाना 
खामोशियों की चादर ओढ 
हाल ए दिल बतला जाना 
चोरी चोरी नजरें मिलाना 
बार बार मिलने से घबराना 
हर आहट पर सिहर उठना 
और पसीने में नहा जाना 
दांतों तले पल्लू दबाकर 
वो धीमे धीमे मुस्कुराना 
बात बात पर खिलखिलाना 
हौले हौले से गुनगुनाना 
इश्क के आगोश में समाए 
मंत्रमुग्ध से चलते जाना 
कनखियों से ताक झांक कर 
अंगड़ाइयों से आमंत्रण देना 
किसी न किसी बहाने से 
मेरे इर्द गिर्द चक्कर लगाना 
मुझे कहीं नहीं पाकर वो तेरा 
व्याकुल हिरनी सा भटकना 
वो अहसास मचल रहे हैं, सनम 
फिर से उन पलों को जीने के लिए 
जो हमने बिताए थे इंतजार में 
शाम के धुंधलके में मिलने के लिए 
एक छुअन भर से जिंदा कर दो
गर्म सांसों की आग में तपा डालो 
बांहों की विजयमाल पहना कर 
इस शाम को अमर बना डालो 
हरिशंकर गोयल “हरि” 
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