फागुन के महीने में दो सखियाँ हसी ठिठोले कर रही थीं। वैसे इन दोनों के मध्य एक रिश्ता भी था। इनमे से एक दूसरी की भाभी थी। पर दोनों ने कभी भी खुद को भाभी ननद के रिश्ते में नहीं बांधा था।
    शाम होने को आयी। हुरहारे युवक होली के गीत गाते हुए निकले। टोली का पक्का इरादा था। आज तो जमुना भाभी के साथ होली खेलनी है। अभी तक यह संभव नहीं हो पा रहा था। भाभी की सखी उनकी ननद राजवती हमेशा उसकी रक्षा में लट्ठ लिये तैयार रहती थी। वैसे राजवती की एक बात सही थी। ये हुरियारे पूरे दिन क्या करते हैं। शाम को ही इन्हें भाभी के साथ होली खेलनी है। होली खेलिये। पर समय देखकर। 
    वास्तव में हुरियारे युवकों की मंशा भी यही थी। रंग लगाने का असली मजा तो तभी है जबकि रंग लगा व्यक्ति फिर से नहाये। वे खुद तो दिन भर नहाते नहीं थे। पर स्त्रियों के लिये यह कैसे संभव है। आखिर घर की व्यवस्था उन्हीं के तो हाथों में होती है। 
   आज फिर से राजवती की उनसे झड़प हो गयी। आखिर रंगों की होली लट्ठ मार होली में बदल गयी। राजवती की लाठी कन्हैया को लग गयी। वह लंगड़ा कर गिरा तो अपना संयम खो गया। पास पड़े पत्थर पर उसका सर लगा और सर से खून की एक धारा निकली। 
  राजवती का गुस्सा काफूर हो गया। तुरंत घर से मलहम लेकर आयी। कन्हैया के सर पर दवा से ज्यादा कुछ और असर हो रहा था। एक युवक और युवती नजदीक आ रहे थे। और दोनों के मानस पर कुछ अलग ही अनुभव हो रहा था। 
   कन्हैया शहर में पढा लिखा, परंपराओं में सही और गलत तलाशता युवक धीरे धीरे राजवती के मानस में छाने लगा। होली आते आते दोनों एक दूसरे के मित्र बन गये। गांव की व्यवस्था से आगे बढने लगे। संभवतः दोनों प्रेम की पवित्र डोर से भी बंध गये। 
    कितनी ही प्रेम कहानियों की तरह यह कहानी भी कब पूर्ण हुई। दो प्रेमियों का मिलन कब हुआ। यदि हुआ तो आज रात भी रज्जो किस की याद में अपनी नींद भुला रही है। जीवन में सब कुछ पाकर भी वह खुद को किस तरह खाली हाथ महसूस कर रही है। 
   ” शहर से लड़का कुछ जादू टोना सीख आया है। उसी टोटके से लड़की को वश में कर रहा है। अपनी औकात भूल रहा है। पर हम ऐसा नहीं होने देंगें। लड़की के लिये ऐसा वर ढूढेगे कि खुशियों में लड़की इस जादू टोने के इश्क को ही भूल जायेगी।” 
   माॅ ने कहा। और रज्जो ने सच मान लिया। वैसे वह प्रतिवाद ही कब करती थी। उस दिन उसे कन्हैया पर गुस्सा आया। शहर में पढकर गांव की भोली भाली युवतियों पर अपनी विद्या का प्रयोग करता है। चल तेरी विद्या तुझे मुबारक। अब हम तेरी याद भी नहीं करेंगें। 
   बस भाभी थी जो इसे टोटका नहीं मानती थीं। इसे प्रेम मानती थीं। मानती थीं कि प्रेम को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। 
   रज्जो आज तक कन्हैया को भुला नहीं पायी। हालांकि हमेशा उसकी याद को एक टोटका समझने का भ्रम बना लिया है। वैसे यह भ्रम भी अच्छा ही रहा। तभी तो वह एक सुखद पारिवारिक जीवन जी पायी। तभी तो वह अपने ससुराल में सभी की चहेती बन पायी। पर आज भी वह कभी कभी विचार करती है कि शायद वह प्रेम ही था। जो आज भी उसके मानस को विदीर्ण कर रहा है। आज भी उसके कानों में कन्हैया का वह विश्वास भरा व्यक्तव्य सुनायी देता है। 
  ” रज्जो। यह कोई टोटका नहीं है। यह प्रेम ही है। जीवन के आखरी लम्हे तक तुम्हीं से प्रेम करूंगा। सचमुच यह प्रेम कभी मरता नहीं है। एक दिन तुम खुद ही मुझसे कहोगी कि वास्तव में यह प्रेम ही था।” 
   अभी भी रज्जो कन्हैया के प्रेम को नकार रही थी। मन में जबरन भरी धारणा को छोड़ नहीं रही थी। फिर भी प्रेम की एक छाया खुद के पास महसूस कर रही थी। सुजान और सुंदरिया के प्रेम के रूप में। अफसोस कि एक और प्रेम कहानी अपूर्ण रहने जा रही थी। अपूर्ण होने से पूर्व रज्जो के मानस को झकझोर रही थी। अपने अस्तित्व के लिये जद्दोजहद कर रही थी। एक अपूर्ण प्रेम कहानी की नायिका से बढकर ऐसा कौन है जिससे एक प्रेम कहानी अपनी पूर्णता की गुहार लगा सकती है। 
   पूरी रात रज्जो इस नवीन प्रेम कहानी के अनुरोध को सुन अनसुना करती रही। पूरी रात इस प्रेम को भी एक छलावा समझती रही। पर छलावा था ही कहाॅ। सुजान एक देहाती सीधा साधा युवक और सुंदरिया भी तो उसका ही चयन थी। पुत्र वियोग में उसने सुंदरिया पर जितने अत्याचार किये, क्या वे सुंदरिया पर किये थे। नहीं। सुंदरिया को वह खुद से प्रथक कब मान पायी। आज भी उसे सुंदरिया अपनी ही परछाई लग रही थी। वही युवती राजवती लग रही थी जो अपने प्रेम को समझ नहीं पायी। 
   सूरज की किरणें धरती पर आयीं। आज रज्जो कुछ बदली हुई लगी। सबसे पहले उसने सुंदरिया को गले लगाया। फिर आंसुओं की बारिश कर दी। सुंदरिया से कुछ पूछने की जरूरत ही नहीं। जब वह सुंदरिया को खुद का ही स्वरूप मानती है तो खुद के विषय में किसी से क्या पूछना। 
   गांव में एक बार फिर से उसी क्रांतिकारी रज्जो की वापसी हुई। एक स्त्री की क्रांति के समक्ष समाज कब तक टिक पाता है। होली का दिन आ पहूंचा। गांव की होली जो एक विशाल रूप ले चुकी थी, में अग्नि प्रज्वलित होने के तुरंत बाद सुजान और सुंदरिया भी परिणय सूत्र में बंध गये। अपूर्ण प्रेम कहानी कब अपूर्ण रहती है। अपूर्ण प्रेम कहानियों को पूर्णता प्रदान कर पूर्ण होती है। 
   छिटपुट विरोध के बाद गांव में फिर से वही होली खेली जा रही थी। गांव के युवक एक बार फिर से सुंदरिया भाभी को रंग लगा रहे थे। और रज्जो। वह गांव में कहाॅ। वह तो भागी जा रही थी, उसी दगरे की तरफ जिसके एक तरफ मढैया में वह ढोंगी बाबा रहता था। 
क्रमशः अगले भाग में
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’
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