सिर्फ शाम फागुनी क्या पूरा मास होता रंगीन।
खेत-खलिहान बाग बगीचे सभी होते रंगीन।
फागुनी शाम याद दिलाये भक्त प्रहलाद की।
बुराई होती धराशायी,अच्छाई की नाद की।
फाल्गुनी मास याद दिलाता बाल कन्हैया की।
होली खेलती गोपियां और यशोदा मैया की।
नंदपुर में होली खेली थी माखन-दूध से।
दिव्य बालक के आने से खुशियों में बेसुध से।
फागुनी माहौल में स्वर्णाभूषण पहने अमलताश।
सहजन पहने मानों मोगरे के गजरे, यथावत रहे काश।
फागुनी मास में रंग-गुलालों से सजे हाट।
फागुनी मास में पिया-प्रिया की अलग ही ठाठ।
फागुनी मास में भूला देते सारा वैर।
मित्र-शत्रु करते संग नाचते-गाते सैर।
फागुनी मास में फैली पकवानों की खुश्बू।
हवाओं में बिखरी मालपुए,गुझिए की खुश्बू।
फागुनी मास के रंग,बदरंग ना करना।
शत्रुता,रासायनिक रंगों से परहेज ही रखना।
-चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण।