प्रेम अगर सच होता तो,
राह में यूँ ना भटक जाते,
जाते कहीं भी दिशा चाहे,
लौट कर सदा वहीं आते।
नज़र ना तकती किसी को,
किसी के ना आलिंगन भाते,
काम से घूमते दुनिया में चाहे,
पर लौट कर सदा तुम पर आते।
भौतिकता के प्रलोभन में हम,
ना किसी का कभी लाभ उठाते,
स्नेह, त्याग और सच्चाई अपनाकर,
रिश्ता पूर्ण हृदय से हम निभाते।
प्रेम था या भटकाव कहें इसे,
जो ठहराव कहीं भी ना पाते,
भटकते भटकते एक दिन हम,
जीवन से भी भटक से जाते।
पूजा ‘पीहू’